Sunday, July 31, 2005

कैसे करे भोगी प्‍यार

बीती यादों के सग्रंह को मन कहुँ ।
इन्द्रियों के उपासक को तन कहुँ ।।
मायाजाल की गहरी चाल को ।
मैं मन्‍दबुद्धि क्‍यों ना सच कहुँ ।।


क्‍यों के


अगर यह बोध हो गया
संसार का है नहीं अकार ।
मन्‍दिर में स्‍थित मुर्ति से
फिर कैसे करे भोगी प्‍यार ।।

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