Tuesday, June 02, 2009

मज़मून-ए-जिंदगी

मज़मून-ए-ज़िन्दगी
मज़मून है ज़िन्दगी
किताब मैं ख़ुद हूँ
हर पल नया पन्ना
जुड़ता है
जाने कब यह सिलसिला
रुक जाऐ
जाने कैसा मज़मून हो


इस पन्ने पर
ठाहकै
इस पन्ने पर
सिसकियाँ
इस पन्ने पर
जमां जोड़
इस पन्ने पर
खव्वाईशें
इस पन्ने पर
नाउमीदी

इस पन्ने पर
नमोशी 
इस पन्ने पर
खोफ
इस पन्ने पर
घाटै
इस पन्ने पर
बदगूमानी
इस मज़मून का
जाने कैसा मीजाज है
जाने कैसा मज़मून हो


जिल्त पर है
नाम मेरा
कलमकार का
पता नहीं
दुनिया की मिस्सलों में
है जिकर मेरा
उन पर जोर नहीं
इसे आग के हवाले कर दो
धुयाँ उठेगा
शायद तुम्हे पता चल जाऐ
रद्दी में दे दो इस को
शायद मेरे लिफाफे बन जाएं
मज़मून की क्या कैफियत है
जाने कैसा मज़मून है


इस पन्ने पर क्या दर्ज है
अगले पन्ने पर क्या होगा
उसे पता है
इसे पता है
मुझ को ही मालूम नहीं
जाने क्या मज़मून है


यह पन्ना तो
सिहा है
इस पन्ने के हर्फ
मिट चुकें हैं
इस पन्ने की लिखावट
सही
नहीं
इस पन्ने पर
अनजान भाषा
इस पन्ने पर
सिरफ लकीरें हैं
यह पन्ना तो
इस किताब का ही नहीं
यह कैसा मज़मून है

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