कभी इस बुत को
कभी उस बुत को
फर्याद करते हैं
काश दर्द सुने जो
ऐसा एक इन्सान मिल जाए
इस सडक जाते हैं
उस सडक जातॆ हैं
काश कही पर
मंजिल का निशान मिल जाए
यह सोगात ख़रीदते हैं
वो सोगात ख़रीदते हैं
दिल को सकुन मिले
काश एसा समान मिल जाए
ज़माना हो गया है
ज़माने से बात किए हुए
काश किसी महफिल से
शिरक्त का पैगाम मिल जाए
पैगाम की दरकार तो तो गैरों की महफिल में होती है
ReplyDeleteथे अपने बहुत फिर भी महफिल मेरी वीरान रह गई