इक रुख लगाया है
जिस दे पत्ते
वक्त पैन ते
खङक्ण गे
तलवरां वान्ग
कवी: प्रेम अबोहरी
सौजन्य: ङा सुरिन्दर खन्ना
इस का हिन्दी रुप कुछ ऐसा होगा:
एक पेड लगाया है
जिस के पत्ते
वक्त पडने पर
तलवारोँ की झन्कार देंगे
यह एक क्रान्तिकारी कविता है । हाल ही में यह कविता हमारे कालॅज में सार्थक् हुई । प्रिन्सीपल स्त्री कर्मियों को कम्जोर जान कर मनमानी सी कर रहा था । परन्तु हाल ही में एक अधियापिका उस की हठधर्मि के विरुध अड गई । सभी सहकर्मि उस के साथ हो लिए । इससे पहले सभी निर्लज बास से लोहा लेने कतरा रहे थे । युनियन भी अब दम दिखाने लगी है । ऐसे में जब सहकर्मि ख्नन्ना ने इस कविता का वाचन किया तो यह बहुत सटीक टिप्पणी लगी ।
Saturday, August 27, 2005
पँजाबी कविता
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