Friday, August 05, 2005

ज़िन्‍दगी का नशा

ज़िन्‍दगी है एक नशा ।
इसे पीना आना चाहिए ।।
यह है वो हसीन बला
जिसे लुभाना आना चाहिए ।।



जब ज़ख्‍मों में टीस उठे
दवा दारू कर लिया करो ।
तन्‍दरुस्‍त शरीर है जब तक पास तुम्‍हारे
इस जहान को भोगना आना चाहिए ।।



जाने कितने नाम दर्ज़ हैं
इतिहास के पन्नो पर ।
लाशें पर वो खो चुकी हैं

ग‍र्द के उबारों में ।।
मर के क्‍या ले जायोगे इस जहान से ।
जीते जी नाम दाम कमाना आना चाहिए ।।




खुदा के रहते भी
खुशनसीब से बद्‍नसीब हो जाया करते हैं ।
बद्‍नसीब से खुशनसीब होने का
सलीका आना चाहिए ।।



पैदायश से मौत तक का
एक सफ़र है ।
ज़िन्‍दगी की बस इतनी सी सच्‍चाई है ।
महलों से मकबरों तक
बरात बन कर
आना जाना चाहिए ।।



नफ़रतों के दायरों में
जलन की आग जलाए रखने से
ठन्‍ढ़क नहीं मिलती कभी ।
मोकाप्रस्‍ति ही सही
दुश्‍मनों की महफ़िल में भी
आना जाना चाहिए ।।

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