आर० सी० मजुमदार ने British Paramountancy में Doctrine of Lapse पर जिस बात का खुलासा किया है वह यह है कि इस सिद्धान्त को पूरी तरह डलहोज़ी पर मडना ठीक नहीं होगा । इस सिद्धान्त को लागु करने पर जो बात मुख्य रुप से घटित हो रही थी वो यह थी कि कम्पनी का सीमा क्षेत्र बड रहा था । भारतिय राज्यों को बङी तेजी से नष्ट कर के उन के क्षेत्रों को कम्पनी राज का क्षेत्र घोषित किया जा रहा था ।
अब प्रश्न यह उठता है कि अगर कम्पनी का क्षेत्र बङ रहा था तो इस से डल्होज़ी को कोई खास फायदा हो रहा था या फिर हर हाल में कम्पनी को तो फायदा हो ही रहा था ।
यहां पर एक बात पर ध्यान देना ज़रुरी है और वह यह है कि यह सिद्धान्त १८५० में लागु हुआ और उस समय तक कम्पनी पुरी तरह पिट चुकी थी । कम्पनी घाटे पर जा रही थी । हिस्सेदारों को काफि समय से लाभान्श नहीं मिल रहा था । कम्पनी का कई व्यापारिक क्षेत्रों पर एकाधिकार खत्म हो चुका था । यहां तक कि कम्पनी के पास कोई एकाधिकार रह ही नहीं गया था । कम्पनी के मुकाबले में कई बरतानवी व्यापरी व्यापार कर रहे थे । १८५३ में चार्टर एक्ट में यह स्पष्ट व्यवस्था कर दी गई थी कि कम्पनी अपने कर्जदारों को जल्द से जल्द अदायगी करेगी एंव कम्पनी को बन्द करने की प्रक्रिया की शरुआत की जाऐगी । यहां तक की चार्टर में यह तक भी अकिंत नहीं किया गया था कि कम्पनी को और कितने सालों तक बने रहने कि अनुमति दी गई थी ।
इन सब बातों को ध्यान में रख कर अगर इस तथ्य की समीक्षा की जाए कि कम्पनी धङा धङ अपने क्षेत्र बढाए जा रही थी तो यह प्रशन सभाविक हि उठ खङा होता है कि वह ऐसा किस लिए कर रही थी । इस बात को दूसरे शब्दों में भी पूछा जा सकता कि ऐसे हालातों में डल्होज़ी को क्या ज़रुरत पङी थी कि वह कम्पनी का क्षेत्रफल बढाए जा रहा था जब कि कम्पनी को बन्द करने के स्पष्ट संकेत आरहे थे । यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि वो जिस भी क्षेत्र का विलय करता था उस की मन्जुरी उसे बोर्ड आँफ ड्रायक्टर्स से लेनी पङती थी और उसे वह मन्जुरी असानी से मिल भी जाती थी ।
इन सारी बातों की समीक्षा करते हुए मजुमदार यह तर्क देता है कि विलय की नीति डल्होज़ी पर नहीं मङी जानी चाहिए । यह ठीक है कि यह सारा काम डल्होज़ी के हाथों हुआ और डल्होज़ी ने भी कोई कसर नहीं छोडी । उस ने तो बडी शान से हर एक विलय को अपने नाम पर गङते हुए इस बात का गर्व किया कि उस ने यह सब किया । मजुमदार ने स्पष्ट किया है कि उस के इस खेल में बोर्ड आँफ कन्ट्रोल पूरा पूरा भागिदार था । बोर्ड आँफ कन्ट्रोल के ही ईशारे पर डल्होज़ी यह हौंसला कर सका । क्योंकि बोर्ड आँफ कन्ट्रोल का ईशारा था तो हि बोर्ड आँफ ड्रायक्टर्स से मन्जुरी मिलती गई । ड्रायक्टर्स तो यह जानते थे कि अब उन की कम्पनी तो रद्ध होने वाली है और जो कुछ भी कम्पनी हिन्दुस्तान में बनाए बैठी है उस सब की जिम्मेवारी ब्रिटिश सरकार ही ले सकती है एंव लेने वाली है क्योंकि कम्पनी तो बुरी तरह पिट चुकी थी । अगर सरकार कि ओर से ईशारा है तो उन्हें क्या दिक्कत हो सकती थी । और ऐसा हि हो रहा था ।
अतः विलय की नीति के कर्त्ताधर्त्ता ब्रिटिश सरकार खुद हि थी । कम्पनी या डल्होज़ी का नाम तो अपने पाप छुपाने के लिए किया गया एंव अपने कार्य को न्यायिक दिखाने के लिए किया गया ।
विलय की नीति के मुख्य कर्त्ताधर्ता