Sunday, October 02, 2005

A Response to Shri Laxmi. N. Gupta


A Response to Shri Laxmi. N. Gupta

I here intend to bring out in open a response to a poem of Shri Laxmi. N. Gupta titled सम्राट और भिखारी.

I have passed some remarks which refers to the blog world. I have my views on the above mentioned comments. I have placed those comments in the comment option of Shri Gupta. However, I feel that it should be placed in open as a post to invite and involve other Hindi bloggers on the issue of Hindu ethics also.

My answer follows:

गुप्ता जी,
इस में कोई शक नहीं कि कविता बहुत ही रोचक है मैने इसे सुन्दर नहीं कहा
यह बात अब ब्लॉग जगत के दिग्गज भी मन ही मन मान रहे होंगे की विचारों को कविता में आप सहज ही पिरो लेते है आप यह काम बङी दक्षता से करते हैं अगर अरस्तु के विचारों का सहारा लुँ तो कविता ही चेतन मन एंव इतिहास बोद्ध का उच्चत्म रुप है तुलसीदास ने भी रमायण के अयोध्या काण्ड के मंगलाचार में कविता को बोद्धिक क्षमता पर दैवी प्रभाव एंव प्रताप बताया है


परन्तु मैं आप की कविता में दर्शाए दर्शन से सहमत नहीं हुँ

देखिए अगर चाहत न होती
तो द्वन्द न होता
द्वन्द न होता तो होता संघर्ष न होता
संघर्ष न होता तो प्रयत्न न होता
प्रयत्न न होता तो उसार न होता

अगर उसार नहीं है, प्रगती नहीं है तो जीवन अर्थहीन हो जाएगा
भविष्य में मोक्ष की सम्भावना नहीं रहेगी शायद Weber भी इसी बात से अचम्भित था कि भारतिय कर्म सिद्धान्त Protestant ethics के समान होते हुए भी वह socio-economic result नहीं दिखा पाया जो Protestant ethics ने western Europe में दिखाएं हैं

ज़रुरत है तो चाहत में शुद्धता लाने की प्राप्ति के माध्यम को चुनने की

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