Sunday, July 31, 2005

कैसे करे भोगी प्‍यार

बीती यादों के सग्रंह को मन कहुँ ।
इन्द्रियों के उपासक को तन कहुँ ।।
मायाजाल की गहरी चाल को ।
मैं मन्‍दबुद्धि क्‍यों ना सच कहुँ ।।


क्‍यों के


अगर यह बोध हो गया
संसार का है नहीं अकार ।
मन्‍दिर में स्‍थित मुर्ति से
फिर कैसे करे भोगी प्‍यार ।।

Saturday, July 30, 2005

बिछड़ा हुआ हुँ

६।४।१९९६


अपने जब आस पास थे
तब भी यही बात थी
दूर हो लिया हुँ सब से
अब भी वही आलम है
जाने किस से बिछड़ा हुआ हुँ
जाने किसने मिलने आना है





हर इक पल
इन्‍तज़ार का दर्द
हर इक पल
जुदाई की कस्‍क
आ लेने दे
पास अपने
इस से पहले कि
तुँ भूल जाए मुझे





इतनी कायनात
बिखेर रखी है
क्‍या याद है
तुझे मेरी भी
आलेने दे पास अपने


रो कर पुकारूँ तुझे यां
यादों में बसाऊँ
साज उठालुँ यां
शब्‍दों में सजाऊँ
तस्‍वीरें बनादूँ यां
ठोस पत्‍थर तराशुँ
बोल तो सही
मैं क्‍या हो जाऊँ
आलेने दे पास अपने



नज़रों से देखुँ तुझे
हाथों से छु लुँ
सांसो में महक हो
तेरे होने की
होंटों पर मेरे
तेरे होंटों की
लज्‍ज़त लिपटे
आगोश में मेरे
तेरे दामन की हरारत
कानों में मेरे
तेरे सिमटने की सरसराहट
ज़बान पर मेरे
बस तेरा ही नाम
आलेने दे पास अपने


तुझ से ही बिछड़ा हुआ हुँ
तुने ही मिलने आना है
तुझ से जुदाई का ही
यह आलम है
आजा तुँ पास अब
इस से पहले कि
तुँ भूल जाए मुझे




___
लक्ष्मीनारायण गुप्त ने ऐसे ही भावों को अपनी कविता कौन है वह में विशुध्‍द हिन्‍दी में लिखा है । उन की अपनी शैली है ।

एक दास्‍तान हो गई

१८.०१.०५

अगर बरबादी ही है अन्‍जाम मेरा
तो देखे खुदाई ताहेयात तक
जो हम भी सीना तान कर
चलते जाऐंगे ।।




खुदा खुदा रहा ।
और यह सब हो गया ।
वाह क्‍या खुदा है ।।


अल्‍ला ईश ईसा में तकरार हुई ।
दुरग्‍गत इन्‍सान की हुई ।
तवारीख में यूँ ही
एक दास्‍तान हो गई ।।




ऊपर दिए गए तीन आषारों में बाद के आषार शुनामी की तबाही देखने के बाद लिखे गए थे । तीसरा आषार ऐजुकेशन फोरम में लिखे गए एक निबन्‍ध पर है I उस निबन्‍ध में मा‍र्टिन कैटल ने शुनामी को मुसलमानों एंव हिन्‍दुयों पर परमात्‍मा की मार बताया था I दुसरे यरोपिए लेखकों ने उस लेख की निन्‍दा की थी I मेरी यह रचना उस पर प्रतििक्रया थी जिसे मैं यहां प्रकाशित कर रहां हुँ I

Wednesday, July 27, 2005

अंतरिक्ष से ख़बर

अंतरिक्ष में यह खबर गर्म है ।

कि पृथ्‍वी का अकाश लाल हो गया है ।

धरती का रंग पीला हो गया है ।

नदियों में तेज़ाब बहता है ।

पेडों के नाम पर काले ठुंठ घड़े हैं ।

मानव पुर्जे सरपट भाग रहें हैं ।

अब वहां एक प्रयोगशाला खोली जाएगी ।

हे राम

रात के गहन अन्‍धेरे में

घबराई हुई एक अबला

खुद में सिमटी हुई

इधर उधर देखे

ड़री ड़री सी

बे-तरन्‍नुम सांसे

सम्‍भालती हुई सी

शायद चाहती हो होंसला

हर एक कण से

क्‍या हर एक कण में

तुम हो हे राम

Monday, July 18, 2005

ख्‍वाबों का बज़ार

२५-०६-२००५

ख्‍वाबों का एक बज़ार लगा था ।
हर मुम्किन ख्वाब सजा था ।
हर एक ख्वाब मुफ्त ।।




हम ने बज़ार का दौरा किया ।
अखिर में हम पर यह नषर किया गया ।
कोई भी एक ख्वाब लेलो
और वह साकार होगा ।।



हम ने फिर बाज़ार का दौरा किया ।
हर एक ख्वाब पर फिर से नज़र दौडाई ।
हर एक ख्‍वाब को देखा जाना ।
अब तक इस पषोपेश में हैँ
कि किस ख्वाब को चुने ।।



ऐसे में ज़िन्दगी खत्म होने को आई ।

खुदा खुदा हो गया

जब खुदा से चाहा




तब खुदा को चाहा,



युँ खुदा खुदा हो गया



यह पोस्ट पहले भी प्रकशित की गइ है यहाँ पर युनिकोटॅ अधारित प्रकाशन किया गया है

Sunday, July 17, 2005

धन्‍यवाद

देबाशीष, अनुराग और अनुनाद का धन्‍यावाद । देबाशीष वह पहले व्‍यक्‍ति थे जिन्‍होने मेरे ब्‍लाग की त्रुटियों को मुझे बतलायला। उन्‍होने मुझे मुझे समाधान भी दिए पर मैं उन्‍हें समझ नहीं पाया था । इस पर भी उन्‍होने मेरा साथ नहीं छोडा था ।
मेरे हर सन्‍देश का उत्तर दिया । लगता है कि कन्‍ही वह मुझे भूल भी गए थे । पर जब मैंने सम्‍पर्क किया तो उन्‍होंने वारतालाप बनाए रखा ।

अनुनाद का भी धन्‍यवाद करता हुँ । उन्‍होंने भी मेरे सन्‍देश का
उत्तर दिया ।अनुराग के उत्तरों से ज्‍यादा लाभान्‍वित हुँआ हुँ ।
वैसे तो देबाशीष ने भी समाधान दे दिया था ।
परन्‍तु अनुराग के ही ब्‍लाग से मैंने उन लिक्‍कों का
प्रयोग किया जिससे मैं अपना प्रकाशन युनिकोड में कर पाया ।
मैं आशा करता हुँ कि अब मेरा ब्‍लाग पढा जा सकता है ।

Saturday, July 16, 2005

काश ऐसा हो जाए

कभी इस बुत को
कभी उस बुत को
फर्याद करते हैं
काश दर्द सुने जो
ऐसा एक इन्‍सान मिल जाए



इस सडक जाते हैं
उस सडक जातॆ हैं
काश कही पर
मंजिल का निशान मिल जाए



यह सोगात ख़रीदते हैं
वो सोगात ख़रीदते हैं
दिल को सकुन मिले
काश एसा समान मिल जाए



ज़माना हो गया है
ज़माने से बात किए हुए
काश किसी महफिल से
शिरक्‍त का पैगाम मिल जाए

Thursday, July 14, 2005

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Tuesday, July 12, 2005

Musafiroon ki gintee